"कामिनी एक अजीब दास्तां"।
कामिनी भाग 8
गुरुदेव के मुख से एक हजार एक पिशाचीनीयो का सुनकर चेतन वही सिर पकड़ कर बैठ जाता है और कुछ देर बाद गंभीर भाव से कहता है।
"मैं कामिनी और उन एक हजार एक पिशाचीनीयो के अतीत के बारे में जानना चाहता हूं, कृपा कर मुझे उनकी पूरी दास्तान, विस्तार पूर्वक बताएं"?
गुरुदेव ने कहा -"कामिनी इस संसार के समय की एक ऐसी कहानी है जिस पर समय का कोई नियंत्रण नहीं है। "समय ने उसे अपने सभी बंधनों और नियमों से मुक्त कर स्वतंत्र कर दिया है, समय से स्वतंत्र होने के कारण उसे प्रकृति से असाधारण शक्तियां मिली और इन्हीं शक्तियों के साथ उसे भयानक हैवानियत भी मिली, जिसे स्वीकार करना उसकी नियति बन गई"।
"लगभग 5000 वर्ष पहले इस संसार में संसार तो था पर इस संसार का संसार केवल भारत में बसता था, उस समय सिंधु सभ्यता, सरस्वती नदी और सिंधु नदी के किनारों पर अपनी उन्नति के चरम शिखर पर थी, तब दक्षिण भारत में कामपुर नाम का नगर था जहां की सुंदर गणिकाऐ अर्थात (वेश्याएं) पूरे विश्व में प्रसिद्ध थी।
" विश्व के सैकड़ों सम्राट, राजा, सेनापति, मंत्री, पदाधिकारी व धनी लोग अपनी वासना की शांति और आराम करने के लिए कामपूर आते थे और यहां के सुंदर गणिकाओ को मुंह मांगा मूल्य देते थे, इसी कारण यहां की सभी गणिका समृद्ध, संपन्न और वैभवशाली जीवन व्यतीत करती थी, चंद्रवती नाम की एक अत्यंत सुंदर स्त्री कामपुर की गणिका प्रमुख थी पूरा नगर उसका सम्मान करता था।
" चंद्रवती की एक पुत्री थी, जिसका नाम कामिनी था
उसकी अद्भुत सुंदरता किसी का भी मन मोह लेने का सामर्थ्य रखती थी पर कामीनी सिंधु देश के युवराज माणकलाव से, बचपन से प्रेम करती थी।
माणकराव भी कामिनी को अपने प्राणों के समान प्रेम करता था, माणकराव से अत्यंत प्रेम के कारण ही, कामिनी ने खुद को, कभी किसी को छूने नहीं दिया"।
"कामिनी केवल उस दिन की प्रतीक्षा कर रही थी जिस दिन माणकराव 20 वर्ष का हो जाए क्योंकि माणकराव के कुलानुसार केवल 20 वर्षीय युवक ही विवाह कर सकता था"।
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माणकराव प्रतिवर्ष बसंत ऋतु में कामपुर आता था और 1 माह तक कामिनी के साथ रहता था, कामिनी बसंत ऋतु के आगमन की प्रतीक्षा में एक-एक दिन गिन रही थी, उन दिनों मौसम प्रतिदिन अपना स्वरूप बदल रहे थे, चारों ओर फूल खिल रहे थे और कामिनी की प्रेम तपस्या भी समाप्त होने वाली थी"।
1 दिन कामिनी पक्षियों को दाना खिला रही थी तभी उसकी मां चंद्रवती ने आकर कहा - "मैं नगर भ्रमण करने जा रही हूं, हमारे द्वार पर सिंधुदेश से पालकीया आई है, उन सभी अतिथियों को आदर से अतिथि गृह में विश्राम कराओ, मैं शाम तक लौट आऊंगी"।
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चंद्रवती की यह बात सुनकर कामिनी पागलों की तरह दौड़ती हुई द्वार पर आती है और पहली पालकी का पर्दा हटा कर देखती है"।
"पालकी में एक बहुत ही सुंदर युवती बेठी है वह सुंदर युवती कामिनी को पहली दृष्टि में ही पहचान लेती है और कहती है - "मेरा नाम रात्रि है, मैं सिंधु देश के युवराज माणकराव की दासी हूं, उन्होंने मुझे, आजीवन आपकी सेवा के लिए भेजा है और साथ कई बहुमूल्य उपहार भी भेजे हैं"।
मैं गणीका प्रमुख की बेटी, कामिनी हूं, हमारे यहां आपका स्वागत है, आप कृपया कर अतिथि गृह में चले"।
फिर रात्रि पालकी में से उतर कर अपने सेवकों से कहती है "सेवको"! "सारा सामान उतार कर अतिथि गृह में ले चलो"।
माणकराव ने अपनी, प्रेयसी कामिनी के लिए, कई आकर्षक उपहार भेजे हैं, जिनमें वस्त्र, आभूषण, इत्र, दर्पण आदि है।
कामिनी अतिथि कक्ष में रात्रि को उचित स्थान पर बैठाती है, तब रात्रि कहती है।
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सिंधु युवराज माणकराव ने इन आकर्षक उपहारों के साथ अपना संदेश भी भेजा है, जिसमें, उन्होंने कहा है - "मेरे प्राणों की हंसिनी जैसे अपने प्रेमी के विरह में हंस तड़पते हैं, वैसे ही मैं भी तुम्हारे विरह में तड़प रहा हूं, मैं प्रतिदिन बहती वायु, पक्षियों और घुमक्कड़ बादलों को अपने हृदय का समाचार सुना कर भेजता हूं, आशा करता हूं, तुम्हारा हृदय मेरे हृदय के संकेतों को समझ लेता होगा। "प्रति वर्ष अनुसार इस माह ना आने का कारण यह है कि हमारे राज दरबार में हमारे कुल गुरु सामान मुनि आए हुए हैं, उनकी सेवा करने मात्र से हृदय की सभी आकांक्षाएं पूरी हो जाती है, मेरी सबसे बड़ी आकांक्षा तो तुम ही हो, इसीलिए मैं उनकी सेवा करना चाहता हूं, तुम्हें और कुछ दिनों तक प्रतीक्षा की पीड़ा देने के लिए क्षमा चाहता हूं, इसीलिए अपनी सबसे बुद्धिमान सेविका रात्रि को तुम्हारी सेवा में भेज रहा हूं, उसे स्वीकार कर लेना"।
संदेश सुन लेने के बाद कामिनी रात्रि को ध्यान से देखती है और कहती है - "सुंदर नहीं,,,, अति सुंदर हो, शिक्षित भी लगती हो, चतुर भी लगती हो पर तुम्हारी बुद्धि पर संदेह है"।
"बुद्धि के संदेह संतुष्ट उत्तर से समाप्त हो जाते हैं, कामीनी"। रात्रि ने सटीकता से कहा
"मनुष्य के जीवन का अर्थ क्या है"? कामिनी ने प्रश्न पूछा
"यह मनुष्य की आकांक्षा पर निर्भर करता है"। रात्रि ने उत्तर दिया
"प्रेम और वासना में क्या अंतर है"? कामिनी ने फिर प्रश्न किया
"प्रेम समर्पण है और वासना आवश्यकता है"।
"स्त्री से सुंदर कौन है"?
"पुरुष का विवेक स्त्री से सुंदर है"। रात्रि ने उत्तर दिया
"पुरुष की पांच कमजोरी क्या है"?
"स्वादिष्ट भोजन, सुंदर स्त्री, सुगंधित मदिरा, परिवार से लगाव और अहंकारी मन"।
"एक सेविका का क्या धर्म है"? कामीनी ने फिर प्रश्न किया
"अपने स्वामी की आज्ञा का पालन करना"। रात्रि ने उत्तर दिया
कामिनी रात्रि के उत्तर से संतुष्ट होकर उसे अपने हृदय से लगा लेती है और कहती है - "मुझे कभी अपनी स्वामीनी मत समझना, हमेशा अपनी सखी समझना, तुम सच में बहुत बुद्धिमान हो"।
कुछ ही दिनों में कामिनी और रात्रि बहुत अच्छे से घुलमिल जाती है और इनके बीते दिन बहुत खुशहाली से व्यतीत होते हैं, एक दिन रात्रि चिंतित भाव लिए कामिनी के पास आकर कहती है - "सिंधु देश से आभूषण व्यापारी यहां व्यापार करने आए हैं, उन्होंने बताया कि सिंधु युवराज माणकराव ने सन्यास धारण कर लिया है"।
रात्रि का यह वाक्य कुछ क्षणों के लिए कामिनी को निष्प्राण कर देता है क्योंकि जो आशा का सहारा उसके जीवन का कारण था, आज वह भी समाप्त हो गया, अब उसका हृदय किस के लिए गति करें, उसका मन, मस्तिष्क और हृदय इस आघात को नहीं सह पाते हैं और वह उसी क्षण अपनी चेतना शक्ति खोकर, मुर्छित अवस्था में गिर पड़ती है।
रात्रि कमीनी को संभालती है और उसके सुंदर मुख पर शीतल जल का छिड़काव करके उसकी चेतना शक्ति को जगाती है, कामिनी होश में आते ही फूट-फूट कर रोने लगती है, उसके मादक नेत्रों से टिप टिप अश्रु वह रहे थे, रात्रि भी कामिनी की यह दशा देखकर बहुत दुखी थी, वह अपना चतुर सांत्वना कामिनी को देती है पर कामिनी के टूटे हृदय को संतोष नहीं मिलता है, जी भर के रो लेने के बाद, अर्धरात्रि को कामिनी, रात्रि को जगा कर कहती है।
"मेरी प्रिय सखी रात्रि"! "अब मेरे जीवन का कोई अर्थ नहीं रह गया है, अब मृत्यु प्रतिकर लगने लगी है पर फिर भी हृदय में एक उमंग की लहर हिलोरे लेकर, कह रही है कि तू किसी की बात पर विश्वास मत कर और एक बार स्वयं जाकर अपने प्रीतम से मिल, अपनी आंखों से उसका निरीक्षण कर, इसीलिए मैंने, सिंधु देश जाने का निर्णय किया है, सिंधु देश के व्यापारी कब यहां से प्रस्थान करेंगे"?
"आज प्रातकाल ही प्रस्थान करेंगे पर उन व्यापारियों के साथ में जाने में प्राणों का खतरा है और अस्मत गंवाने का भी भय है"। रात्रि ने स्पष्ट भाव से कहा
"अब प्राणों का तनिक भी मोह नहीं है और जिस योवन को अस्मत के बाजार में भी अपने प्रेमी के लिए छुपा कर रखा था, उस योवन का भी अब कोई मूल्य नहीं रहा, मुझे माणकराव से इस क्षल का कारण जानना है"?
""इस विषय पर एक बार अपनी माता से, बात कर देखो"। रात्रि ने सुझाव दिया
"मां को अगर जरा भी संदेह हो गया तो, मुझे इसी शयनकक्ष में बंद कर देगी, इसीलिए हमें चुपचाप किसी को बिना बताए चलना होगा"।
फिर रात्रि अपने संदूक में से वस्त्र और आभूषण निकालकर कामिनी को देती है और कहती है -"इन वस्त्रों और आभूषणों को धारण कर लो, यह यात्रा में तुम्हारी रक्षा करेंगे"।
"एसी क्या विशेषता है, इन वस्त्रों और आभूषणों में"? कामिनी ने आश्चर्य से पूछा
"यह वस्त्र सिंधु देश के उच्च लोगों की पहचान है और इन आभूषणों पर सिंधु देश की लिपि अंकित है, इसीलिए वह व्यापारी भी तुम्हारा सम्मान करेंगे"।
"क्या लिखा है इन आभूषणों पर मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा है"? कामिनी ने प्रश्न किया
"कुछ खास नहीं, इन सभी आभूषणों पर मेरा नाम लिखा है, जैसे! " रात्रि के कंगन, रात्रि की पायल और कुछ नहीं"। रात्रि ने हल्की सी मुस्कान लिए कहा
"वह व्यापारी तो उच्च कुल के है फिर तुम्हें उनसे इतना भय क्यों है"? कमीनी ने रात्रि से पूछा
"मुझे कुलिनो की कुलता व्यंग लगती है, वह सभी व्यापारी कामदेव भक्त हैं, इसीलिए अपने साथ गुप्त शस्त्र और विष रख लो, जब तक मेरे शरीर में प्राण रहेंगे, तब तक तुम्हें, कोई छू भी नहीं पाएगा और मुझे कुछ हो जाए तो यह तुम्हारी सहायता करेंगे"।
फिर कामिनी और रात्रि किसी को बिना बताए, चुपचाप, अपने घर से निकल कर, व्यापारियों के साथ प्रस्थान करती है।
"क्या कामिनी और रात्रि सुरक्षित सिंधु देश पहुंच पाएगी"?
"आखिर क्यों माणकराव ने अचानक सन्यास धारण कर लिया"?
"रात्रि ने इन व्यापारियों को कामदेव का भक्त क्यों कहा"?
"और उस समय की अद्भुत सुंदरी कामिनी आखिर पिशाचीनी कैसे बनी"?
अपने सभी द्वंद्व आश्चर्य और प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए पढ़ते रहिए
"कामिनी एक अजीब दास्तान"
#chetanshrikrishna
Aliya khan
23-Feb-2022 09:03 PM
बहुत ख़ूब
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🤫
23-Feb-2022 08:30 PM
बहुत खूब, सस्पेंस पर ही खत्म कर दी कहानी आपने, वेटिंग फ़ॉर नेक्स्ट पार्ट.....!
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